बंगाल में चुनाव खत्म हो चुके हैं अब इंतजार तो बस चुनाव के परिणामो का ही रह गया हैं...इसी सोच के साथ आज जब घर से बाहर निकला और ऑफिस के लिए टैक्सी पकड़ी, उस पर सवार हुआ तो टैक्सी ड्राईवार से ही पुछा लिया- क्या लगता हैं भाई क्या होगा? क्योकि बंगाल में ऐसी मान्यता हैं कि बंगाली समाज के हर वर्ग के लोग जागरूक होते हैं...उसका तुरंत जवाब था जो होगा बंगाल के लिए सही होगा...अगर सरकार बदलती हैं तो लोग परिवर्तन का स्वाद तो ले पायेंगे...क्योकि अच्छी सरकार क्या होती हैं ये लोगो को पता ही नहीं। पिछले 34 साल से एक तरफा सरकार का राज चल रहा हैं...और इसी 34 साल में पीढ़ी जन्मा, जवान भी हो गया...राकेश, टैक्सी ड्राईवर भी इसी पीढ़ी में ही जन्मा हैं...तो वो बदलाव चाहता हैं।
मैंने पुछा इस बार ही क्यों तुम परिवर्तन चाहते हो...उसने जवाब दिया जन्म से ही इस सरकार को देख रहा हूं...मैंने इनके साथ इनकी कई रैलियो में भी भाग लिया...मैं वामपंथी मजदूर संगठन सीटू का भी मेंबर रहा। लेकिन पिछले साल जब में बीमार था और ये लोग मुझे जबरन रैली में भाग लेने को कह रहे थे... मैंने इंकार किया तो इन लोगो ने मुझे पीटा...मैंने इनके लिए सब कुछ किया, लेकिन आखिरकार मार पड़ी...आदर्श ने आखिरकार मार ही खिलाई...इसलिए चाहता हूं ममता दीदी कुछ करेगी जरूर...क्योकि वो साफ हैं...लोगो की भलाई की बात करती हैं...एक मौका जरूर दीदी को दिया जाना चहिए...और अगर कुछ नहीं कर पाई तो हम इन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा देंगे... उसमें क्या हैं...?
मुझे भी लगा राकेश सही कह रहा हैं। राजनिति के गोलमाल के बीच उसके फैंसले तो साफ हैं।
बंगाल का इतिहास अगर देखे तो इसी पृष्टभूमि पर लोगो को बार बार जुल्म सहना पड़ा...बार बार दमन का शिकार होना पड़ा...कभी जमींदारो से, कभी राजाओ से, कभी मुस्लीम शासको से तो कभी अंग्रेजो से...। बार बार जुल्म सहने के बाद आखिरकार विरोध के स्वर उठने लगे और फिर बंगाल विद्रोहियो की पृष्टभूमि बना। और यही काऱण हैं कि बंगाल के लोग अब भी हर गलत चीजों का विरोध करते नजर आते हैं...सहते सहते जो चीख बनी वही विद्रोह का स्वर भी बना...इसलिए अंग्रेजो के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से लेकर समाज की कुरितियो के खिलाफ आवाज बुलंद करने में बंगाल कभी पीछे नहीं रहा। यहां कई सांस्कृतिक और धार्मिक आंदोलन भी हुए।
बंगाली बार-बार विरोध और दमन और फिर विद्रोह के बाद एक स्थिर परिवेश में रहना पसंद करते हैं और यही कारण हैं की बंगाल की जनता ने जब 1977 में वामपंथियो पर भरोसा कर उन्हें राज्य की बागडोर सौंपी तो निश्चित हो गया कि अब हम सुरक्षित हैं इनके हाथो में। वामपंथियो ने भी बंगाल की जनता को सुरक्षा और विश्वास दोनो ही दिया। लंबे समय तक लोग वामपंथी आंदोलन के साथ जुड़ते गए और इसी क्रम में कई ऐसे लोग भी भीतर आ गये जो वामपंथी अदर्श के लिए ही खतरा बन गया...जैसे मेरे टैक्सी ड्राईवर राकेश को इस तरह के सदस्यो से ही मार खानी पड़ी थी...और यहीं वामपंथी पर से लोगो का विश्वास हटने लगा...जिसपर विश्वास किया उसने ही दगा दिया...जब अपने चोट करते हैं तो ज्यादा लगता हैं...यही बंगाल के लोगो के साथ भी हुआ। सिंगूर, नंदीग्राम और लालगढ़ की घटनाओं ने साबित कर दिया वामपंथी अदर्श से भटक चुके हैं। इसलिए बंगाल की अग्निकन्या के रुप में उभरी ममता बनर्जी पर लोगो ने विश्वास जताया। लोकसभा और नगरनिगम चुनाव में उनके हक में मत दिया। लेकिन तृणमूल कांग्रेस शासित नगरनिगम और पंचायतो से भी भ्रष्टाचार की खबरे उठने लगी...बंगाल की जनता फिर डगमगा गई...और इस बीच विधानसभा चुनाव हुआ...बंगाल की जनता के मत ईविएम में बंद हो चुके हैं... अब यह 13 मई को ही खुलेगी...जो बंगाल के भविष्य की दिशानिर्देशन करने वाली हैं...अब बस उस इतिहासिक पल का सभी को इंतजार हैं।
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